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Showing posts from May, 2020

मानव उत्थान

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                            मानव का उत्थान                              आधुनिक मानव समाज प्राचीन काल के मानव समाज से पूर्णतया भिन्न है उसके रहन-सहन, वेश-भूषा व परिस्थितियों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला है । कुछ दशकों में तो मनुष्य जीवन की कायापलट हो चुकी है ।  इस परिवर्तन का संपूर्ण श्रेय विज्ञान को ही जाता है और विज्ञान पूर्ण परमात्मा की देन हैं यदि हम आधुनिक युग को विज्ञान का युग कहें तो कदापि अतिशयोक्ति न होगी, आज के परिवेश को देखते हुए सर्वथा उपयुक्त होगा । मानव हित में विज्ञान की उपलब्धियाँ अनेक हैं । विज्ञान ने मनुष्य को यातायात के ऐसे साधन प्रदान किए हैं, कि जो दूरी हमारे पूर्वज महीनों-सालों में तय किया करते थे, आज वह दूरी कुछ दिनों, घंटों में तय की जा सकती है । साइकिल, दुपहिया वाहन, कारें व रेलगाड़ी सभी विज्ञान की देन हैं । हम सब मनुष्य शब्द को समझते हैं। यह एक परिचित शब्द है जिसे आमतौर पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या हम वास्तव में जानते हैं कि कैसे मनुष्य या मानव प्रजातियां अस्तित्व में आईं और कैसे यह बीतने के साथ विकसित हुई जैसा कि

आधुनिक शिक्षा स्तर

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                           खराब शिक्षा स्तर                                       शिक्षा का अर्थ -  अध्ययन तथा ज्ञान ग्रहण करना।   शिक्षा चेतन या अचेतन रूप से मनुष्य की रूचियों समताओं, योग्यताओं और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, आवश्यकता के अनुसार स्वतंत्रता देकर उसका सर्वागींण विकास करती है।  शिक्षा हमारे सोचने, रहने और जीने के तरीके को बदलने में सहायता करती है।    आधुनिक शिक्षा हमें धनी बना सकती है। परन्तु उसमें नीति और संस्कारों का अभाव मिलता है। इसका स्तर गिरता जा रहा है।  हमारी प्राचीन शिक्षा  हमें प्रकृति और सभी प्राणियों से संपर्क बनाए रखने में सहायता करती थी। यह संस्कारों, नीतियों और अपने परिवेश को बेहतर समझने में सहायक थी।  मनुष्य प्रकृति के बहुत समीप था। परन्तु आधुनिक शिक्षा आज जीविका कमाने का साधन मात्र बनकर रह गई है।    संस्कार, नीतियाँ और परंपराएँ बहुत पीछे छूट गए हैं।  आधुनिक शिक्षा यथार्थ और व्यवहारिक ज्ञान से बहुत दूर है। यह मात्र आधुनिकता की बात करती है। परन्तु अध्यात्म और भावनाओं से कौसों दूर है। यह शोषण की नीति पर आधा

पूर्ण परमात्मा कौन हैं...

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                        सच्चा भगवान कौन हैं जानिए                                       👇                                                                   परमात्मा हम बचपन से ही ईश्वर , अल्लाह की भक्ति करते आ रहे हैं और इसी तरह अलग अलग तरीके से ईश्वर एवं धर्म से जुड़े हुए हैं फिर भी हम पूछते हैं कि भगवान कौन हैं क्या सच में भगवान है ,है तो कहां है भगवान, यदि भगवान है तो कहां है ,क्या किसी ने सच में भगवान को देखा है ,भगवान कहां रहता है यह  ब्रह्मांड किसने बनाया है क्या भगवान के अस्तित्व का कोई सबूत है क्या भगवान एक है या अनेक है क्या भगवान के प्रेम को महसूस कर सकते हैं यदि भगवान है तो हमें इस कुदरती आपदा बीमारी गरीबी अत्यंत दुख अन्याय और हिंसा से व्याकुल क्यों होना पड़ता है..? इन प्रश्नों का उत्तर अब संत रामपालजी महाराज ने दिया है।  उन्होंने हमें अपने स्वयं के धर्मग्रंथों से सिद्ध करके भगवान के बारे में हर जानकारी बताई है। उन्होंने हमें बताया कि - हाँ, भगवान वास्तव में मौजूद है।  वह मानव के रूप और आकार में है और उसके पास एक नाशवान शरीर नहीं है।  उनका शरीर

कौन तथा कैसा है कुल का मालिक

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                   कौन तथा कैसा है कुल का मालिक                                       👇 जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठनं. 721 पर क्षेत्राय भाषा में) तथा सत् कबीर (श्री धर्मदास जी की वाणी में क्षेत्रायभाषा में) तथा बन्दी छोड़ कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्राय भाषा में) कबीरा, कबीरन् व खबीरा या खबीरन् (श्री कुरान शरीफ़ सूरत फुर्कानि नं. 25,आयत नं. 19, 21, 52, 58, 59 में क्षेत्राय अरबी भाषा में)। इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष, अगम पुरुष, अलख पुरुष, सतपुरुष, अकाल मूर्ति,शब्द स्वरूपी राम, पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं, जैसे देश के प्रधानमंत्री का वास्तविक शरीर का नाम कुछ और होता है तथा उपमात्मक नाम प्रधान म

संत सताने की सजा

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                         संत सताने की सजा एक बार दुर्वासा ऋषि ने अभिमान वश अम्ब्रीष ऋषि को मारने के लिए अपनी शक्ति से एक सुदर्शन चक्र छोड़ दिया। सुदर्शन चक्र अम्ब्रीष ऋषि के चरण छू कर वापिस दुर्वासा ऋषि को मारने के लिए दुर्वासा की तरफ ही चल पड़ा। दुर्वासा ऋषि ने सोच लिया कि तुने बहुत बड़ी गलती कर दी है। लेकिन अधिक समय न रहते देख दुर्वासा सुदर्शन चक्र के आगे-2 भाग लिया। भागता-2 श्री ब्रह्मा जी के पास गया और बोला कि हे भगवन कृप्या आप मुझे इस सुदर्शन चक्र से बचाओ। इस पर ब्रह्मा जी बोले कि ऋषि जी यह मेरे बस की बात नहीं है। अपने सिर पर से बला को टालते हुए कहा कि आप भगवान शंकर के पास जाओ। वे ही आपको बचा सकते हैं। यह सुनते ही दुर्वासा ऋषि, भगवान शंकर के पास गया और बोला कि हे भगवन् ! कृपा करके आप मुझे इस सुदर्शन चक्र से बचाओ। इस पर भगवान शिव ने भी ब्रह्मा की तरह टालते हुए कहा कि आप श्री विष्णु भगवान के पास जाओ। वही आपको बचा सकते हैं। यह सुनते ही भगवान विष्णु जी के पास जाकर दुर्वासा ऋषि ने कहा कि हे भगवन ! आप ही मेरे को इस सुदर्शन चक्र से बचा सकते हो वरना यह मेरे को काट कर मार डालेगा। इस

तंबाकू की उत्पत्ति की जानकारी

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                          तम्बाकू की उत्पत्ति एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहन ऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिए आऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू से दोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथा राज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैं क्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहीं मानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी ने बहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गले में राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबार के कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि