तंबाकू की उत्पत्ति की जानकारी

                          तम्बाकू की उत्पत्ति



एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहन ऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिए आऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेशऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू से दोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथा राज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैं क्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना।हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्र है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है।आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहीं मानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी ने बहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गले में राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्र साध्वी वाले जिसे देखकर दरबार के कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज,कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषि की पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा।निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी की कुटी पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एक कामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति मेंखाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यताहै।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देवने एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चौड़ा तम्बू (ज्मदज) भेजा और कुछ सेवादार भी भेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरतीउतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदीकी परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू,जलेबी, कचौरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी,रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहा कि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथमें भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपासे सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजनकरने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकर आश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजन ला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करने की प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भी नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चार पदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुत परेशान था। ईर्ष्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐऔर सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलायाऔर पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, न कोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति के बदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितना भोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्ध कराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दर केवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजनखा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि जी कीअनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दी। मेरे पास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है?ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है।मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकों से कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आ गया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोकअपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैरमें तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गाय घायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहीं तम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जीने कहा है कि :-तमा $ खू = तमाखू।खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू = खून यानिरक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद है कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का खून पीने के समान पाप लगता है।





सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर। इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।



एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वाले को जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्रा गमन करने वाला, एक बार शराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगताहै। सौ स्त्रियों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वह पाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। विचार करो तम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले का कितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो।

              तम्बाकू के विषय में अन्य विचार

तम्बाकू यानि हुक्का पीने वालों की स्थिति बताई है :-

(संत गरीबदास जी के ग्रन्थ में ‘अथ तमाखू की बैंत’ नामक अध्याय में)



पित बाई खांसी निबासी निबास। कफ दल कलेजा लिया है गिरास।।

काला तमाखू अरू गोरा पिवाक। दस बीस लंगर जहाँ बैठे गुटाक।।

बाजे नै गुड़ गुड़ अरू हुक्के हजूम। कोरे कुबुद्धि बीसा हैं न सूम।।

बांकी पगड़ी अरू बांकी ही नै खुद डूबै अरू डुबोए है कै।गुटाकड़ अटाकड़ मटाकड़ लहूर। एक बेठैगा अड़कर एक बेठैगा दूर।।

पीवै तमाखू पड़ै कर्म मार। अमली के मुख में मुत्रा की धार।।



कड़वा ही कड़वा तू करता हमेश। कड़वा ही ले प्यारे कड़वा ही पेश।।

कामी क्रोधी तूं लोभी लबूट। बचन मान मेरा धूंमा न घूंट।।हुक्का हरामी गुलामी गुलाम। धनी के सरे में न पहुँचे अलाम।।

पामर परम धाम जाते न कोई। झूठे अमल पर दई जान खोई।।मुरदा मजावर हरामी हराम। पीवैं तमाखू सो इन्द्री के गुलाम।।अज्ञान नींद न सो उठ जाग, पीवैं तमाखू गए फुटि भाग।।

भांग तमाखू पीवैं ही, सुरापान से हेत। गोसत मिट्टी खायकर जंगली बनैं प्रेत।।

गरीब, पान तमाखू चाबहीं, सांस नाक में देत। सो तो अकार्थ गए, ज्यों भड़भूजे का रेत।।

भांग तमाखू पीवहीं, गोसत गला कबाब। मोर मृग कूं भखत हैं, देंगे कहां जवाब।।

भांग तमाखू पीवते, चिसम्यों नालि तमाम। साहिब तेरी साहिबी, जानें कहाँ गुलाम।।

गऊ आपनी अम्मा है, इस पर छुरी ना बाहय। गरीबदास घी दूध को, सब ही आत्म खाय।।



सभी प्रकार का नशा छोड़ने के लिए देखिये साधना टीवी पर सत्संग शाम को 7.30 से 8.30 बजे तक।

Comments

Popular posts from this blog

Bhaiya dooj

Who is true god

What is the right education