आधुनिक शिक्षा स्तर


                           खराब शिक्षा स्तर
                                     

शिक्षा का अर्थ -
 अध्ययन तथा ज्ञान ग्रहण करना। 

 शिक्षा चेतन या अचेतन रूप से मनुष्य की रूचियों समताओं, योग्यताओं और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए, आवश्यकता के अनुसार स्वतंत्रता देकर उसका सर्वागींण विकास करती है। 

शिक्षा हमारे सोचने, रहने और जीने के तरीके को बदलने में सहायता करती है।  

 आधुनिक शिक्षा हमें धनी बना सकती है। परन्तु उसमें नीति और संस्कारों का अभाव मिलता है। इसका स्तर गिरता जा रहा है। 

हमारी प्राचीन शिक्षा  हमें प्रकृति और सभी प्राणियों से संपर्क बनाए रखने में सहायता करती थी। यह संस्कारों, नीतियों और अपने परिवेश को बेहतर समझने में सहायक थी।

 मनुष्य प्रकृति के बहुत समीप था। परन्तु आधुनिक शिक्षा आज जीविका कमाने का साधन मात्र बनकर रह गई है।  

 संस्कार, नीतियाँ और परंपराएँ बहुत पीछे छूट गए हैं।

 आधुनिक शिक्षा यथार्थ और व्यवहारिक ज्ञान से बहुत दूर है। यह मात्र आधुनिकता की बात करती है। परन्तु अध्यात्म और भावनाओं से कौसों दूर है। यह शोषण की नीति पर आधारित है। अपने विकास और प्रगति के नाम पर प्रकृति व हर उस चीज़ का शोषण करती है , जो उसके मार्ग पर बाधा है या जिसके विनाश से उसे कुछ हासिल हो सकता है। इसका उद्देश्य मनुष्य को रोज़ी-रोटी दिलाना है।  उसे हर व्यक्ति अपना प्रतिस्पर्धी दिखाई देता है। वह इससे बड़े - बड़े महल खड़े कर सकता है।  परन्तु मानवीय संवेदना कहाँ से लाए, जो प्राचीन शिक्षा का मुख्य आधार हुआ करती थी।

 आधुनिक शिक्षा प्रणाली के स्वयं भी लाभ है। मनुष्य आज स्वालंबी है। उसके पास आज हर तरह की सुख-सुविधाएँ विद्यमान हैं। परन्तु कहीं-न-कहीं वह स्वयं को खो रहा है।

सभी को ईश्वर भक्ति की प्रेरणा से ओतप्रोत आध्यात्मिक शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए।

सभी धर्म, धर्माचार्य, संत तथा ऋषि-मुनि आध्यात्मिक मूल्यों को सर्वोच्च महत्व देते हैं ।

मनुष्य को अपने आप को पहचानने की आवश्यकता है कि वह कौन है कहां से आया है उसका उद्देश्य क्या है इन सभी बातों पर विचार करके मनुष्य को अपने अस्तित्व का ज्ञान होना बहुत जरूरी है यदि मनुष्य यह समझे कि वह सब कुछ है सब कुछ कर सकता है तो यह उसका निरर्थक विचार है जिसमें अधिक सच्चाई नहीं है।
मनुष्य को विचार करना चाहिये आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से अंधा होकर अपनी संस्कृति , अध्यात्म से दूर जाकर अपने जीवन के अनमोल और मुख्य उद्देश्य भूल चुका है।

कुछ ऐसे तथ्य जिन पर हमें विचार करना चाहिए - 
वर्तमान समय से 100 वर्ष पहले भी विश्व भर में लगभग 30% लोग शिक्षित हुआ करते थे परंतु आज वर्तमान समय में शिक्षा का स्तर तेजी से बढ़ा है जो की संपूर्ण विश्व में 70% से अधिक लोग शिक्षित हैं बाकी लगभग 25% लोग किसी न किसी रूप में किसी भी तरीके से शिक्षित लोगों के संपर्क के साथ जीवन जीते हैं ।
यदि आध्यात्मिक क्षेत्र जो कि सत्य है उसके अनुसार शिक्षा परमेश्वर की देन है जिससे मनुष्य अपने पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों को अध्ययन कर उनकी जानकारी प्राप्त कर सकता है जिससे मनुष्य को अपने धार्मिक शास्त्रों के अनुसार क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसका ज्ञान होता है तथा उस धर्म में कुछ लोगों के द्वारा फैलाया गया पाखंड गलत नीतियां अपने शास्त्रों में पढ़कर मनुष्य खत्म कर सकता है।
साथियों हमारे इतिहास में कुछ ऐसे साधु संत हुए हैं जिनका अनमोल योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता जैसे संत कबीर जी उन्होंने उस समय के दौरान धर्मों में फैली हुई कुरीतियों का विरोध करके संपूर्ण शास्त्रों के आधार पर ज्ञान जनता में फैलाया और एक परमेश्वर की भक्ति करने के लिए दृढ़ किया।
एक तरफ वर्तमान समय में संत रामपाल जी महाराज (कबीरपंथी) वही कार्य कर रहे हैं जो संत कबीर जी ने किया संत रामपाल जी महाराज ने सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों को सभी के समक्ष स्पष्ट रूप से खोलकर विस्तार से समझाया और सभी धर्मों में प्रचलित गलत साधना और अंधश्रद्धा युक्त भक्ति को समाप्त करने का कार्य कर रहे हैं ।
मनुष्य को एक बात का विचार करना चाहिए की अपनी शिक्षा का इस्तेमाल करके उसे अपनी संस्कृति और अपनी नीतियों और आध्यात्मिकता से जुड़ा रहना चाहिए जिससे ईश्वर से उसका लगाव बना रहे और उसे अपने जीवन में कभी कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े इसके लिए मुख्य उपयोगी शिक्षा को अपने सद ग्रंथों को पढ़ने और उनके अनुसार चलने में करना चाहिए साथ ही साथ जीवन निर्वाह के लिए अनैतिकता को छोड़कर नैतिकता के आधार पर कार्य करना चाहिए।

आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए संत रामपाल जी महाराज की सभी पुस्तकें पढ़ना चाहिए यह पुस्तकें सभी धर्म ग्रंथों के अनुसार लिखी गई है।

संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पवित्र पुस्तके अवश्य पढ़ें
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1.ज्ञानगंगा
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