मानव उत्थान


                            मानव का उत्थान 
                           



आधुनिक मानव समाज प्राचीन काल के मानव समाज से पूर्णतया भिन्न है उसके रहन-सहन, वेश-भूषा व परिस्थितियों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला है । कुछ दशकों में तो मनुष्य जीवन की कायापलट हो चुकी है ।
 इस परिवर्तन का संपूर्ण श्रेय विज्ञान को ही जाता है और विज्ञान पूर्ण परमात्मा की देन हैं यदि हम आधुनिक युग को विज्ञान का युग कहें तो कदापि अतिशयोक्ति न होगी, आज के परिवेश को देखते हुए सर्वथा उपयुक्त होगा ।

मानव हित में विज्ञान की उपलब्धियाँ अनेक हैं । विज्ञान ने मनुष्य को यातायात के ऐसे साधन प्रदान किए हैं, कि जो दूरी हमारे पूर्वज महीनों-सालों में तय किया करते थे, आज वह दूरी कुछ दिनों, घंटों में तय की जा सकती है । साइकिल, दुपहिया वाहन, कारें व रेलगाड़ी सभी विज्ञान की देन हैं ।

हम सब मनुष्य शब्द को समझते हैं। यह एक परिचित शब्द है जिसे आमतौर पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या हम वास्तव में जानते हैं कि कैसे मनुष्य या मानव प्रजातियां अस्तित्व में आईं और कैसे यह बीतने के साथ विकसित हुई जैसा कि आज हम देखते हैं मनुष्य उस विकास का नतीजा है जो बीते लाखों वर्षों में हुआ है। मनुष्य को पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी कहा जाता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं इसने जीवन को आरामदायक और मूल्यवान बनाने के लिए इतनी सारी चीजों का अविष्कार किया है।

प्राणी की जीवन की यात्रा जन्म से प्रारम्भ हो जाती है। उसकी मंजिल निर्धारित होती है।
मानव की मंजिल मोक्ष प्राप्ति है। उसके मार्ग में पाप तथा पुण्य कर्मों के गढ्ढ़े तथा काँटे हैं। आप जी को आश्चर्य होगा कि पाप कर्म तो बाधक होते हैं, पुण्य तो सुखदाई होते हैं। इनको गढ्ढे़ कहना उचित नहीं।

मानव जीवन परमात्मा की शास्त्र विधि अनुसार साधना करके मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्राप्त होता है। पाप कर्म का कष्ट भक्ति में बाधा करता है। उदाहरण के लिए पाप कर्म के कारण शरीर में रोग हो जाना,पशु धन में तथा फसल में हानि हो जाना। ऋण की वृद्धि करता है। ऋणी व्यक्ति दिन-रात चिंतित रहता है। वह भक्ति नहीं कर पाता। पूर्ण सतगुरू से दीक्षा लेने के पश्चात् परमेश्वर उस भक्त के उपरोक्त कष्ट समाप्त कर देता है। तब भक्त अपनी भक्ति अधिक श्रद्धा से करने लगता है। परमात्मा पर विश्वास बढ़ता है, दृढ़होता है। परंतु भक्त को परमात्मा के प्रति समर्पित होना चाहिए।

निश्चित तौर पर वैदिक या शास्त्र चिंतन समग्र मानवता का वह आध्यात्मिक ज्ञान है, जो प्रत्येक मानवीय सीमा से अलग अखण्ड सृष्टि के कल्याण का संकल्प लेता  है। वेद विभक्ति के शास्त्र नहीं हैं, वे भक्ति के महाकाव्य हैं। जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं, जिसकी उदात्त व्याख्या वेदों या शास्त्रों में न हो। वेदों में कहा गया है कि आदर्श समाज वह है, जहां लोग शान्ति और प्रेम के साथ रहते हों, एक-दूसरे के सहयोग करे। ऐसा समाज मानव को उच्च सफलता की और ले जाने में सहायक होता है।  मानव-मानव सब एक हैं। चाहे वे भारत के हो या कहीं और के। समाज मे कहीं भी हिंसा और कटुता न हो, सब एक-दूसरे से प्रेम करें।

वेदों का यह मानवतावादी दर्शन  विश्व में श्रेस्ठ बनाता है और भारतीय संस्कृति को अद्वितीय देन है। वेदों के इन्हीं संकल्पों के आधार पर भारत वर्ष ने संसार भर को ज्ञान और शान्ति का दर्शन प्रदान किया हैं।  शास्त्रों में कहा गया है कि भाषा भेद, धर्म भेद और क्षेत्र भेद के पश्चात भी विश्व एक परिवार है और उसमें हम सब एक-दूसरे के अपने हैं।
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